कागज (Paper)

Nageshwar Das
By -
0

कागज (Paper) कविता by प्रेमशंकर शुक्ल!


कागज जिसमें स्पंदित है,
वनस्पतियों की आत्मा,
आकाश जितना सुंदर है,

जैसे शब्दों के लिए है आकाश,
कागज भी वैसे ही,

स्याही से उपट रहा जो अक्षरों का आकार,
कागज पूरी तन्मयता से,
रहा सँवार,

जीवन की आवाजों-आहटों, रंगत,
और रोशनी से भरपूर इबारतें,
कागज पर बिखरी हैं चहुँओर,
धरती में घास की तरह,

और उन्हें धरती की तरह कागज,
कर रहा फलीभूत।

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!