कबीर की साखियाँ अर्थ सहित (Kabir's Sakhis with meaning)

Nageshwar Das
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कबीर की साखियाँ अर्थ सहित (Kabir's Sakhis with meaning) - सार्थक विचार और उनका भावार्थ; भक्तिकाल के महान कवि संत कबीरदास जी ने बहुत ही संक्षिप्त, मगर मार्मिक दोहों—साखियों—के माध्यम से जीवन, प्रेम, मानव स्वभाव और ईश्वर-अनुभव की गहन बात कही है। इन रत्नों में अद्वैतबोध (एकत्व की अनुभूति), आन्तरिक सफाई और समाज सुधार की प्रेरणा मिलती है। आइए कुछ प्रसिद्द साखियों को समझें और उनके तत्त्वज्ञानी संदेश का अनुवाद-व्याख्यान करें।


1. “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

भावार्थ (Meaning): जब मैं ‘बुराई’ खोजने निकला, तो बाहर किसी में दोष नहीं दिखा। अपनी आत्मा में झाँककर देखा—मुझे स्वयं से बड़ा दोषी कोई नहीं मिला।

व्याख्या: इस साखी में कबीर जी आत्म–निरीक्षण की महत्ता बताते हैं। दूसरों की कमियाँ गिनने से पहले अपने भीतर झाँकना चाहिए, क्योंकि वास्तविक दोष हमारी ही अज्ञानता व अभिमान में छिपा होता है।


2. “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित हुआ न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

भावार्थ: सारी दुनिया ग्रंथ पढ़-क पढ़ कर मर गई, लेकिन ज्ञानी कोई बना नहीं। प्रेम के दो-ढाई अक्षर समझकर जो जीता, वही सच्चा विद्वान कहलाया।

व्याख्या: कबीर जी कहते हैं कि शास्त्रों का ज्ञान मात्र पृष्ठ-संख्या तक सीमित नहीं; ईश्वर–प्रेम की साधना ही सच्ची बुद्धिमत्ता की कसौटी है।


3. “धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।”

भावार्थ: हे मन! सब कुछ धीरे-धीरे ही पूरा होता है। चाहे माली सौ गमले पानी डाले, पर फल की परिपक्वता का समय अपना ही होता है।

व्याख्या: कबीर जी का यह दोहा धैर्य का पाठ सिखाता है। परिश्रम जरूरी है, पर समय के साथ-साथ प्रगति की प्रक्रिया होती है—इसे जल्दबाज़ी न करें।


4. “कबीरा खड़ा बजार में, माँगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।”

भावार्थ: कबीर बाज़ार में ऐसे खड़े हैं कि सबकी भलाई की कामना करते हैं। किसी से मित्रता नहीं, न ही किसी से बैर; सबको समान दृष्टि से देखते हैं।

व्याख्या: यह साखी कबीर के निष्पक्ष, करुणामयी दृष्टिकोण को उद्घाटित करती है। वे हर प्राणी के प्रति समान करुणा रखते हैं, किसी के पक्ष या विपक्ष में नहीं होते।


5. “माया महिमा मिटी नहीं, रोवत जो बरसे।

सत्य संत कबीर इतना जानो, गिरि गिरि को तरसे।”

भावार्थ: विषय–दिगंबरों की महिमा ठोस पर्वत सी अटल है, चाहे आँसू कितने ही बहा लो। लेकिन जो सत्य–संत की शरण में आए, उनके लिए असंभव भी संभव हो जाता है।

व्याख्या: यह दोहा संसारिक माया की जगमगाहट को पर्वत के समान अटल बताते हुए कहता है कि सच्चे साधक के चरणों में ही परमानंद की प्राप्ति संभव है।

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित (Kabir's Sakhis with meaning)
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित (Kabir's Sakhis with meaning)



निष्कर्ष

कबीर की साखियाँ छोटी-सी पंक्तियाँ हैं, पर इनमें जीवन-दर्शन का महासागर समाया है। आत्म-परीक्षण, प्रेम, धैर्य, निष्पक्षता और ईश्वर-भक्ति—ये साखियाँ हमें सरल शब्दों में गूढ़ अनुभव प्रदान करती हैं। इन संदेशों को अपने आचरण का हिस्सा बनाकर हम भी मानसिक शांति और सच्चे आध्यात्मिक सुख की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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