काल सर्प दोष कितने प्रकार के होते हैं (Kalsarpa Dosha)

Nageshwar Das
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काल सर्प दोष कितने प्रकार के होते हैं (Kalsarpa Dosha): परिचय: वास्तु-वैदिक ज्योतिष में “कालसर्प दोष” का विशेष स्थान है। जब नक्षत्र-भ्रमण के क्रम में चंद्रमा और अन्य ग्रहों (सूर्य, मंगल आदि) ‘राहु’ और ‘केतु’ के बीच आ जाते हैं, तो जन्मकुण्डली में कालसर्प दोष उत्पन्न होता है। इसे अशुभ माना जाता है क्योंकि यह जीवन में अनेक बाधाएँ, अनाकलनीय उतार-चढ़ाव और मानसिक अस्थिरता ला सकता है।

काल सर्प दोष: परिभाषा एवं प्रकार


1. कालसर्प दोष की आधारशिला

  • राहु–केतु की भूमिका
    राहु और केतु, चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी वृक्रांति बिंदु हैं। ये छाया ग्रह माने जाते हैं और इनमें शारीरिक अस्तित्व नहीं, परंतु उनका प्रभाव अत्यंत गहरा होता है।

  • दोष का निर्माण
    जब चंद्रमा के गोचर (पथ) में जन्मकालीन चंद्र, सूर्य या कोई अन्य ग्रह राहु-केतु की सरणी (जोड़ी) के बीच में अवस्थित होता है, तब कालसर्प दोष बनता है।


2. कालसर्प दोष के प्रमुख ८ प्रकार

वास्तु-वैदिक ग्रंथों के अनुसार आठ प्रकार के कालसर्प दोष माने गए हैं। ये इस आधार पर विभाजित होते हैं कि राहु और केतु कुंडली के कौन से भावों (हाउस) में स्थित हैं।

क्रमदोष का नामराहु का स्थानकेतु का स्थान
1अनन्त (Anant)1वाँ भाव7वाँ भाव
2कुलिक (Kulika)2रा भाव8वाँ भाव
3वासुकी (Vasuki)3रा भाव9वाँ भाव
4शंख (Shankh)4था भाव10वाँ भाव
5पद्म (Padma)5वाँ भाव11वाँ भाव
6महापद्म (Mahapadma)6ठा भाव12वाँ भाव
7तक्षक (Takshak)7वाँ भाव1वाँ भाव
8कर्कोटक (Karkotak)8वाँ भाव2रा भाव

नोट: शेष दो बिन्दुओं (गणधार और निष्कंभ) को कभी-कभार बतौर उपप्रकार माना जाता है, पर शास्त्रों में आठ को ही प्रधान रूप से स्वीकार किया गया है।


3. प्रत्येक दोष की विशेषताएँ

  1. अनन्त दोष

    • राहु प्रथम व केतु सप्तम भाव में।

    • स्वास्थ्य समस्याएँ, छवि ह्रास, पारिवारिक कलह लाता है।

  2. कुलिक दोष

    • राहु द्वितीय व केतु अष्टम भाव में।

    • वित्तीय अनिश्चितता, संपत्ति ह्रास, आंतरिक भय की अनुभूति।

  3. वासुकी दोष

    • राहु तृतीय व केतु नवम भाव में।

    • साहसिक या नया कार्य करने में अड़चन; मानसिक अशांति।

  4. शंख दोष

    • राहु चतुर्थ व केतु दशम भाव में।

    • पारिवारिक कलह, घर-परिवार की मरम्मत संबंधी समस्याएँ।

  5. पद्म दोष

    • राहु पंचम व केतु एकादश भाव में।

    • संतान विषयक विलंब या चिंता, रचनात्मक अवरोध।

  6. महापद्म दोष

    • राहु षष्ठ व केतु द्वादश भाव में।

    • वास्तु दोष, स्वास्थ्य—विशेषकर पेट संबंधी तकलीफें।

  7. तक्षक दोष

    • राहु सप्तम व केतु प्रथम भाव में।

    • वैवाहिक जीवन में बाधाएँ, साझेदार के साथ मेल-मिलाप में कठिनाई।

  8. कर्कोटक दोष

    • राहु अष्टम व केतु द्वितीय भाव में।

    • अचानक हादसे, निवेशों में जोखिम, प्रत्याशित लाभ की हानि।


4. उपचार एवं शमन के उपाय

  • रुद्राभिषेक एवं रुद्राभषण: शिवलिंग पर जल, दूध, चन्दन से अभिषेक।

  • मानक मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ राहवे नमः”, “ॐ केतवे नमः” आदि का नियमित जाप।

  • विशेष दान–धर्म: काले तिल, लोहे का बर्तन, चामेली का तेल इत्यादि का दान।

  • यंत्र और रत्न: राहुशांति यंत्र, लहसुनिया नीलम (Blue Sapphire) को ज्योतिषीय सलाह पर धारण।

  • पूजा विधान: शनिवार को विशेष पूजा-अर्चना, कालसर्प योग शांति हवन।

काल सर्प दोष कितने प्रकार के होते हैं (Kalsarpa Dosha)
काल सर्प दोष कितने प्रकार के होते हैं (Kalsarpa Dosha)



5. निष्कर्ष

कालसर्प दोष अपनी जटिलता और परिणामों के कारण प्रायः भय की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन शास्त्रीय उपचार और उचित उपायों द्वारा इसका प्रभाव काफी हद तक शमन किया जा सकता है। किसी भी उपाय को अपनाने से पूर्व साक्षात् ज्योतिषाचार्य की परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक है, ताकि कुंडली की संपूर्ण दशा तथा ग्रह-गोचर परिष्कृत रूप में समझकर अनुकूल निर्णय लिया जा सके।

सम्पूर्ण रूप में, कालसर्प दोष के आठ मुख्य प्रकार हैं—अनन्त, कुलिक, वासुकी, शंख, पद्म, महापद्म, तक्षक एवं कर्कोटक। प्रत्येक दोष की अपनी विशिष्ट स्थितियाँ और परिणाम होते हैं, जिन्हें समझकर ही जीवन में सामंजस्य लाया जा सकता है।

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