किस भाव की परिपक्व अवस्था को रस कहा जाता है?

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रस का अर्थ है एक परिपक्व अवस्था जिसमें भावनाएं, अनुभूतियाँ, और उत्साह उजागर होते हैं। रस को साहित्य में उन अवस्थाओं के रूप में देखा जाता है जब एक कला क्रिएटर अपने कार्य में विशेषता और अर्थपूर्णता को प्रगट करता है। रस की अनुभूति विचारकों को भाषा, छवि, और आत्मसमर्पण के माध्यम से होती है।

रस को साहित्य और कला के क्षेत्र में एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण अंश माना जाता है, और इसे अक्सर भारतीय साहित्यशास्त्र में विस्तार से वर्णित किया गया है। रस की प्रमुख रूपेण नौ होती हैं:

  1. शृंगार (Love)
  2. हास्य (Comic)
  3. रौद्र (Furious)
  4. वीर (Heroic)
  5. करुण (Pathetic)
  6. भयानक (Terrible)
  7. विभत्स (Odious)
  8. आद्भुत (Marvelous)
  9. शांत (Peaceful)

इन रसों के माध्यम से, कला क्रिएटर अपनी रचना में विभिन्न भावनाओं को सांविदानिक और आदर्शपूर्ण तरीके से अभिव्यक्त करता है और पाठक या दर्शक में विशेष भावनाएं उत्पन्न करता है।

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