अश्रु मेरे माँगने जब - महादेवी वर्मा
अश्रु मेरे माँगने जबनींद में वह पास आया !
स्वप्न सा हँस पास आया !
हो गया दिव की हँसी से
शून्य में सुरचाप अंकित;
रश्मि-रोमों में हुआ
निस्पंद तम भी सिहर पुलकित;
अनुसरण करता अमा का
चाँदनी का हास आया!
वेदना का अग्निकण जब
मोम से उर में गया बस,
मृत्यु-अंजलि में दिया भर
विश्व ने जीवन-सुधा-रस !
माँगने पतझार से
हिम-बिंदु तब मधुमास आया !
अमर सुरभित साँस देकर,
मिट गए कोमल कुसुम झर;
रविकरों में जल हुए फिर,
जलद में साकार सीकर;
अंक में तब नाश को
लेने अनंत विकास आया!