क्षीण मार्जिनल यूटिलिटी का सिद्धांत (Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi) "क्षीण मार्जिनल यूटिलिटी का सिद्धांत" एक आर्थिक सिद्धांत है जो व्यक्ति की मानोबल, आनंद या सुख में होने वाले अत्यंत अतिरिक्त परिवर्तन को विवेचित करता है।
इस सिद्धांत के अनुसार, जब किसी वस्तु की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो उसका मार्जिनल यूटिलिटी (अत्यंत अतिरिक्त उपयोगिता) घटता है। इस सिद्धांत का अर्थ है कि एक व्यक्ति एक समय में अधिक से अधिक इकाई का उपयोग करता है, तो उसका सुख बढ़ता है, लेकिन इस प्रकार का वृद्धि अनुभव नहीं होता है और एक समय के बाद इस वृद्धि का असर कम होता है।
क्षीण मार्जिनल यूटिलिटी के सिद्धांत की कुछ मुख्य बातें:
पहला उपयोग (First Use):
- किसी वस्तु का पहला उपयोग बहुत अधिक यूटिलिटी प्रदान कर सकता है, क्योंकि व्यक्ति उससे पहली बार मिलने वाले सुख का आनंद लेता है।
वृद्धि में कमी (Diminishing Returns):
- जब एक व्यक्ति एक वस्तु का उपयोग बढ़ाता है, तो उसका मार्जिनल यूटिलिटी कम होता है और इसे वृद्धि की कमी कहा जाता है।
यूटिलिटी का माप:
- चित्रित करना: मार्जिनल यूटिलिटी को चित्रित करने के लिए यूटिलिटी का माप इकाई से होता है।
- यूटिलिटी की ज्यादा रक्षणा: यूटिलिटी की ज्यादा रक्षणा करते समय उपयोगकर्ता के व्यक्तिगत पसंद और विचारों को मध्यस्थ करना महत्वपूर्ण है।
निर्णय लेने में सहारा:
- संगठनीय निर्णय: यह सिद्धांत विभिन्न संगठनीय निर्णयों को समर्थन करने में सहायक हो सकता है, जैसे कि मूल्य निर्धारण, उत्पादन स्तर, और बाजारिक नीतियां।
इस सिद्धांत के आधार पर, उपभोक्ता विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते समय अपने निर्णयों को सही तरीके से लेने की क्षमता हासिल कर सकता है और अपने संसाधनों का समर्थन करने के लिए सबसे अच्छा तरीका चुन सकता है।